Explainer: सीरिया के पतन से मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन पर क्या होगा असर?

मध्य पूर्व में एक बड़े तख्ता पलट के तहत सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों ने दमिश्क पर नियंत्रण करने के बाद रविवार को राष्ट्रपति बशर अल-असद को पद से हटाने की घोषणा कर दी. इससे असद को भागने पर मजबूर होना पड़ा. करीब 13 साल से अधिक समय तक चले गृहयुद्ध के बाद असद के परिवार के दशकों के शासन का अंत हो गया. बशर अल-असद का पतन क्षेत्र में बड़ा प्रभाव रखने वाले रूस और ईरान के लिए एक बड़ा झटका है. यह दोनों असद के ऐसे प्रमुख सहयोगी हैं जिन्होंने संघर्ष में महत्वपूर्ण दौर में उनका समर्थन किया था.

सीरिया में असद परिवार के पांच दशक के शासन के अंत के बाद क्षेत्र में सत्ता संतुलन नया आकार लेने वाला है. क्षेत्रीय और वैश्विक ताकतें इस नाटकीय रूप से हुए शासन परिवर्तन के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए उभर रही हैं. सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी और अरब राज्य, इजरायल के साथ मिलकर सीरिया में ईरान के प्रभाव को कम करने की कोशिश करेंगे, लेकिन उनकी ओर से असद की जगह कट्टरपंथी इस्लामी शासन का समर्थन किए जाने की संभावना नहीं है. 

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ईरान के लिए सीरिया का पतन उसके तथाकथित प्रतिरोध की धुरी को तोड़ सकता है, जिसमें उसके सहयोगी राज्य और मिलिशिया शामिल हैं.

असद की बरबादी का कारण क्या था?

पिछले सप्ताह इजरायल द्वारा हिज़्बुल्लाह को कमजोर करने और क्षेत्र में ईरान की मौजूदगी कमजोर करने के बाद विद्रोहियों को कथित तौर पर अलेप्पो की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. असद विरोधी गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीरियाई विपक्षी नेता हादी अल-बहरा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए गए एक इंटरव्यू में बताया, "लेबनान युद्ध और हिज्बुल्लाह बलों में कमी के कारण (असद के) शासन को कम समर्थन मिला."

उन्होंने कहा कि ईरान समर्थित मिलिशिया के पास भी कम संसाधन हैं और रूस ने अपनी "यूक्रेन समस्या" के कारण असद की सेनाओं को कम हवाई कवर उपलब्ध कराया.

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किसका क्या दांव पर लगा?

ईरान

ईरान ने सालों से सीरिया का इस्तेमाल मुख्य रूप से सुन्नी राष्ट्र में तैनात प्रॉक्सी ग्रुपों के जरिए अपने क्षेत्रीय प्रभाव का विस्तार करने के लिए किया है. तेहरान ने अपने प्रॉक्सी हिजबुल्लाह के साथ मिलकर सीरियाई सरकारी बलों को खोए हुए क्षेत्र को वापस पाने में मदद की है. इस्लामिक रिपब्लिक ने असद की सेना को सलाह देने के लिए अपने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) कमांडरों को भी भेजा, जो राष्ट्रपति को सत्ता में बनाए रखने में मददगार साबित हुए.

हालांकि पिछले साल अक्टूबर में मध्य पूर्वी संघर्ष की शुरुआत के बाद से जब फिलिस्तीनी आतंकवादी गुट हमास ने इजरायल पर हमला किया, तब हिजबुल्लाह ने इजरायल के साथ अपने युद्ध पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सीरिया से अपनी सेना वापस बुला ली थी. ईरान कथित तौर पर इजरायल से लड़ने वाले अपने प्रॉक्सी को हथियार भेजने के लिए सीरिया में सप्लाई रूट का उपयोग कर रहा है. अलेप्पो और संभावित रूप से लेबनान की सीमा से लगे अन्य शहरों के बरबाद होने से वे मार्ग बाधित हो सकते हैं. इससे ईरान मुश्किल स्थिति में आ सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार सीरिया को खोना ईरान के लिए "बहुत बड़ा झटका" होगा.

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वाशिंगटन डीसी में स्थित क्विंसी इंस्टीट्यूट की कार्यकारी उपाध्यक्ष त्रिता पारसी ने सीएनएन को बताया, "ईरानियों ने सीरिया में जो निवेश किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है. यह लेबनान के लिए एक महत्वपूर्ण लैंड ब्रिज है, लेकिन साथ ही ईरानियों का असद शासन के साथ गठबंधन इस्लामिक गणराज्य के इतिहास में भी कायम है." 

रिपोर्ट के अनुसार, ईरान इस क्षेत्र में अपने प्रॉक्सी का उपयोग आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के साथ संभावित वार्ता में लाभ के रूप में करना चाहेगा.

पारसी ने कहा, "यदि ईरान क्षेत्र में अपनी स्थिति बहुत अधिक खो देता है, तो क्या वे बातचीत करने के लिए बहुत कमजोर हो जाएंगे? लेकिन यदि वे उस स्थिति को यथासंभव बनाए रखने के लिए जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो क्या वे युद्ध को उस स्तर तक बढ़ाने का जोखिम उठाएंगे, जहां कूटनीति संभव नहीं रह जाएगी?"

लेबनान

विशेषज्ञों के अनुसार, सीरिया में होने वाली घटनाओं का लेबनान पर असर पड़ना तय है, जहां तेहरान के प्रॉक्सी हिज्बुल्लाह और इजरायल के बीच एक समझौता अधर में लटका हुआ है. हिज्बुल्लाह असद शासन को बचाए रखने में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी था, लेकिन इजरायल के साथ युद्ध के कारण यह कमजोर हो गया है.

यदि सीरियाई विद्रोही लेबनान की सीमा तक पहुंचने में सफल हो जाते हैं, तो ईरान से हिज़्बुल्लाह का मुख्य लॉजिस्टिक्स और सप्लाई रूट, जो कि सीरिया और इराक से होकर गुजरता है, कट सकता है, जिससे तेहरान का प्रॉक्सी लेबनान में सीमित हो सकता है.

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यूरोन्यूज ने बेक्का घाटी से लेबनानी सांसद एंटोनी हबची के हवाले से कहा, "आज सीरिया में जो कुछ हो रहा है, उसका एक कारण लेबनान में सामरिक हथियारों के प्रवेश को रोकने के लिए सीरियाई-लेबनानी सीमाओं पर नियंत्रण है."

हबची ने कहा, "तुर्की ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि लेबनानी सीमाएं सीरिया के माध्यम से सामरिक हथियारों के स्थानांतरण का मार्ग न बनें. यहां तक कि अल-असद भी यहां अपने क्षेत्र से होकर गुजरने वाले रूट को नियंत्रित नहीं करता है, जिस पर अन्य गुटों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों व विशेष रूप से ईरान का नियंत्रण है."

तुर्की

तुर्की राष्ट्रपति असद के साथ अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा था ताकि क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके. इससे उसका तुर्की-सीरिया सीमा पर स्थित कुर्द अलगाववादियों पर अधिक नियंत्रण पाना संभव हो सकता था. अंकारा ने पिछले दशक में रूस के साथ वार्ता में विद्रोहियों का प्रतिनिधित्व किया था, जिसके परिणामस्वरूप अंततः 2020 में सीरियाई सरकार और विपक्षी ताकतों के बीच युद्धविराम समझौता हुआ था.

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विपक्षी ताकतों को समर्थन देने के बावजूद तुर्की ने सीरिया के साथ मेल-मिलाप की संभावना से इनकार नहीं किया है. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन लंबे समय से कुर्द राष्ट्रवाद का विरोध करते रहे हैं. उन्होंने बार-बार कहा है कि उनका अंतिम लक्ष्य कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) को खत्म करना है, जो तुर्की और इराक में स्थित एक कुर्दिश उग्रवादी और राजनीतिक समूह है. इसने तीन दशकों से अधिक समय तक तुर्की राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. अंकारा का एक और लक्ष्य कथित तौर पर देश के अर्ध-स्वायत्त उत्तरी क्षेत्रों में तेल-समृद्ध सीरियाई सेंचुरी पर नियंत्रण बनाए रखना है.

इजरायल

सीरिया में सत्ता के असंतुलन ने इजरायल को भी मुश्किल स्थिति में डाल दिया है. जबकि राष्ट्रपति असद इजरायल को दुश्मन मानते थे, हालांकि उन्होंने तेल अवीव को कोई सीधा खतरा नहीं बताया और पिछले साल सीरिया में नियमित इजरायली हमलों का जवाब नहीं देने का विकल्प चुना था.

हालांकि, असद के शासन ने लेबनान में हिजबुल्लाह को हथियार सप्लाई करने के लिए ईरान को अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी. लेकिन असद के पतन से इजरायल को राहत नहीं मिली क्योंकि सीरिया में विद्रोह का नेतृत्व करने वाला समूह हयात तहरीर अल शाम (HTS) है जिसका नेता अबू मुहम्मद अल जोलानी एक पूर्व अलकायदा लड़ाका है जिसकी इस्लामवादी विचारधारा इजरायल की विरोधी है.

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पूर्व इजरायली खुफिया अधिकारी एवी मेलमेड ने सीएनएन को बताया, "इजरायल ईरान, उसके प्रॉक्सी और सीरिया के इस्लामी विद्रोहियों के बीच फंस गया है." उन्होंने कहा, "जहां तक ​​इजरायल का सवाल है, कोई भी विकल्प अच्छा नहीं है, लेकिन फिलहाल ईरान और उसके प्रॉक्सी कमजोर हो गए हैं, जो अच्छी बात है."

नए सिरे से शुरू हुए संघर्ष ने तेल अवीव को सीरियाई क्षेत्र में लक्ष्यों पर हमले फिर से शुरू करने का मौका दे दिया है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को दमिश्क के माज़ेह जिले में संदिग्ध इजरायली हवाई हमले हुए.

रिपोर्ट के अनुसार, माना जा रहा है कि इजरायली विमानों ने दक्षिणी सीरिया में खालखाला एयर बेस पर भी बमबारी की. उसे सीरियाई सेना ने रात भर में खाली करा लिया. क्षेत्रीय सुरक्षा सूत्रों ने एजेंसी को यह भी बताया कि सुवेदा शहर के उत्तर में मुख्य एयर बेस पर कम से कम छह हमले हुए. वहां सीरियाई सैनिकों द्वारा छोड़े गए रॉकेट और मिसाइलों का एक बड़ा भंडार है.

एक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस हमले का उद्देश्य इन हथियारों को कट्टरपंथी समूहों के हाथों में पड़ने से रोकना था.



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