53 घंटे में कैसे हो गया 53 साल का शासन? असद से कहां हुई चूक? सीरिया में तख्तापलट का भारत पर क्या पड़ेगा असर

मीडिल ईस्ट के देश सीरिया के विद्रोहियों ने 27 नवंबर को जब अलेप्पो पर हमला किया, तो शायद ही राष्ट्रपति बशर अल-असद ने सोचा होगा कि उनके बुरे दिन शुरू हो चुके है. इसके 11 दिन बाद 8 दिसंबर को विद्रोहियों ने सीरिया पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया. ऐसे में आनन-फानन में वहां के राष्ट्रपति बशर अल-असद को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा. स्काई न्यूज अरेबिया की रिपोर्ट के मुताबिक, असद अपने परिवार के साथ रूस में हैं. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उन्हें पनाह दी है. असद परिवार को सत्ता से बेदखल करने के पीछे 42 साल का सुन्नी नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी है. जुलानी दुनिया के सबसे क्रूर आतंकियों में शामिल अबू बकर अल बगदादी का लेफ्टिनेंट रह चुका है.

जिस शख्स ने सीरिया पर 29 साल तक एक क्षत्र राज किया था, जिस शख्स के बेटे ने 24 साल तक राज किया. जिस बाप बेटे की जोड़ी ने 53 साल तक राज किया. उस राज की धमक को दरकने और बुत को गिराए जाने में 53 घंटे भी नहीं लगे. सीरिया में अल असद हाफेज के बुतों का गिराया जाना... वहां के लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति है. 

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आइए जानते हैं सीरिया में आखिर असद सरकार से कहां हुई गलती? तख्तापलट का मिडिल ईस्ट पर क्या प्रभाव दिखेगा. वहीं, सीरिया के साथ भारत के 74 साल से कूटनीतिक रिश्ते हैं. कश्मीर मुद्दे पर सीरिया की असद सरकार ने भारत का साथ दिया था. उन्होंने कश्मीर मसले को भारत का अंदरूनी मसला करार दिया था. ऐसे में सवाल ये भी है कि सीरिया में उथल-पुथल का भारत के साथ कूटनीतिक रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा:- 

असद सरकार से कहां हुई गलती?
मानवाधिकार हनन: 2011 में अरब क्रांति के साथ ही सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत हुई थी. असद सरकार पर मानवाधिकार हनन के कई आरोप लगाए गए हैं, जिनमें नागरिकों की हत्या, जेल में यातना, और अन्य मानवाधिकार उल्लंघन शामिल हैं. असद सरकार ने इन आरोपों को नजरअंदाज किया था.
गृहयुद्ध: सीरिया में 2011 से ही गृहयुद्ध जारी है, जिसमें असद सरकार के खिलाफ कई विद्रोही समूह लड़ रहे हैं. असद सरकार इस गृहयुद्ध को खत्म करने में प्रभावी कदम नहीं उठा पाई.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ तनाव: असद सरकार के कई देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं, जिनमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, और कई अरब देश शामिल हैं.
भ्रष्टाचार के आरोप: असद सरकार पर कई अन्य आरोप भी लगाए गए हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, सत्ता का दुरुपयोग, और अन्य अनियमितताएं शामिल हैं.

सीरिया में कैसे हुआ तख्तापलट?
-27 नवंबर को सीरियाई सेना और विद्रोहियों के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई.
- 1 दिसंबर को विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम यानी HTS ने यहां के सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया.
- 5 दिसंबर को HTS ने सीरिया के हमा शहर को अपने कब्जे में लिया.
- 6 दिसंबर को दारा और 7 दिसंबर को होम्स शहर पर कब्जा हो गया.
-8 दिसंबर को विद्रोही गुट राजधानी दमिश्क की ओर बढ़ने लगे. इसी दौरान राष्ट्रपति असद ने अपने परिवार के साथ देश छोड़ दिया.
-इसी दिन विद्रोही राष्ट्रपति भवन और संसद भवन में घुस आए. जमकर लूटपाट की. वहां का सामान लूटकर अपने घर ले गए.
-सीरिया में विद्रोहियों ने सड़कों पर बंदूकें लेकर जश्न मनाया. विद्रोही महिलाओं ने भी सड़कों पर जश्न मनाया.
-तख्तापलट के बाद हजारों लोग देश छोड़कर भागते दिखे. गाड़ियों की लंबी कतारें देखी गईं.
-इस दौरान दमिश्क में ईरानी दूतावास पर भी विद्रोहियों ने हमले किए.

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कैसे सीरिया से भागे असद एंड फैमिली?
-अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, सीरियन एयर का विमान स्थानीय समय के हिसाब से रविवार सुबह करीब 4 बजे दमिश्क से उड़ा. इसमें असद और उनके परिवार के सदस्य थे. 
-ये प्लेन पहले भूमध्यसागर के किनारे की तरफ बढ़ा, जो असद के अलवाइट सेक्ट का गढ़ है. इसी बीच प्लेन यू-टर्न लेकर हम्ज़ की ओर बढ़ने लगा. 
-4:40 मिनट के करीब ये रडार से लापता हो गया. फिर प्लेन के क्रैश होने के कयास लगाए जाने लगे.
-ईरान के मीडिया ने तो यहां तक कह दिया कि इज़राइल ने इस प्लेन को मार गिराया, लेकिन प्लेन क्रैश होने के कोई सबूत नहीं थे.
-ये भी कहा गया कि प्लेन के ट्रांसपॉडर को ऑफ कर दिया गया, ताकि वो कहां जा रहा है इसका पता ना चले. बताया गया कि प्लेन कुछ देर के लिए तटीय शहर लताकिया में उतरा था, जहां रूस का आर्मी बेस भी है.
-इसके बाद बताया जाता है कि लताकिया से रूसी एयरफोर्स का प्लेन मॉस्को के लिए उड़ा. इसी प्लेन में सवार होकर असद अपने परिवार के साथ मॉस्को पहुंचे. फिर कुछ देर बाद रूस ने कंफर्म किया कि असद और उनके परिवार को पुतिन ने शरण दी है.

अभी कौन चलाएगा सरकार?
अरब मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के लीडर मोहम्मद अल-बशीर सीरिया के अंतरिम सरकार के मुखिया होंगे. इससे पहले उन्होंने सीरिया के इदलिब राज्य में HTS की सरकार का नेतृत्व किया था. बशर अल असद का ताल्लुक अलावी समुदाय से है. यह समुदाय सीरिया में अल्पसंख्यक है. सीरिया में अलावी समुदाय की आबादी महज 12% है, लेकिन  सत्ता इसी अलावी राजवंश के पास थी.

1950 से शुरू हुए कूटनीतिक रिश्ते
भारत और सीरिया के बीच कूटनीतिक रिश्ते 1950 से शुरू हुए. 1957 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वाया दमिश्क होते हुए अमेरिका का दौरा किया. इस दोस्ती पर मुहर लगाने के लिए दमिश्क के मशहूर उम्मायाद स्कवायर पर एक रोड का नाम जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया है. इन सालों में भारत और सीरिया के संबंध कई युद्द और राजनीतिक संकटों के बावजूद मजबूत रहे हैं. सीरिया में 53 साल तक असद और उनके परिवार का ही राज रहा है. अब असद सरकार गिरने के बाद संबंधों पर असर पड़ना लाजिमी माना जा रहा है.

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सीरिया ने इन मुद्दों पर दिया था भारत का साथ
-पहले हाफेज अल असद और फिर उनके बेटे बशर अल असद के नेतृत्व में सीरिया की सरकार ने हमेशा अहम मुद्दों पर भारत का साथ दिया है.
-कश्मीर के मुद्दे पर जब कई इस्लामिक देश पाकिस्तान का साथ दे रहे थे, लेकिन सीरिया भारत की संप्रभुता के साथ खड़ा रहा.
-जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर भी सीरिया ने भारत सरकार का साथ देते हुए इसे भारत का अंदरूनी मामला बताया था.
-2003 में तत्कालीन PM अटल बिहारी वाजपेई सीरिया दौरे पर गए थे. उस समय भारत ने सीरिया को 25 मिलियन डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट और  1 मिलियन डालर का ग्रांट दिया. 
-2008 में बशर अल असद का भारत दौरा हुआ. इस समय भारत ने सीरिया में IT सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने का प्रस्ताव दिया.

भारत की नई चुनौती
-अब सीरिया में तख्तापलट के बाद वहां कट्टरपंथी और आतंकी ताकतों की वापसी का खतरा है. ये भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी. 
-ISIS जिसे रूस और ईरान की मदद से बशर सरकार ने कुचला था, वो वापस सिर उठाएंगे.
-इसका असर ना सिर्फ पश्चिम एशिया पर पड़ेगा, बल्कि उसके बाहर भी इसका प्रभाव दिखेगा. क्योंकि भारत के लिए ISIS जैसे गुट का मजबूत होना सुरक्षा के लिए चुनौती है.
-अगर सीरिया में विद्रोह नहीं थमा, तो इसका सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा. तेल के दामों में उछाल आ सकता है. भारत इससे प्रभावित होगा ही.
-भारत ने सीरिया में पावर और सोलर प्लांट प्रोजेक्ट शुरू किए हैं. भारत का अच्छा-खासा इंवेस्टमेंट है. विद्रोह के बढ़ने पर इन प्रोजेक्ट पर असर होगा.

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सीरिया पर भारत ने क्या कहा?
भारत ने सीरिया में शांति के पक्ष में बात की है. भारत ने कहा है कि शांति की ये पहल सीरिया के नेतृत्व में ही होनी चाहिए. गृह युद्ध के दौर में भी UNSC के प्रस्ताव के तहत भारत ने अपना दूतावास वहां खोले रखा है. 

सीरिया में रहते हैं कितने भारतीय?
सीरिया में करीब 90 हजार भारतीय नागरिक हैं. इनमें 14 विभिन्न संयुक्त राष्ट्र संगठनों में काम कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय ने कहा कि सीरिया में रह रहे भारतीय लोग अपडेट के लिए दमिश्क में भारतीय दूतावास के आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर +963 993385973 (वॉट्सऐप पर भी)और ईमेल आईडी hoc.damascus@mea.gov.in पर संपर्क में रहें.

सीरिया में तख्तापलट का दुनिया पर क्या होगा असर?
-सीरिया भूराजनीतिक रूप से अहम है. इसकी सीमा इराक, तुर्किये, जॉर्डन, लेबनान और इजरायल जैसे देशों से लगती है. सीरिया पर नियंत्रण अहम व्यापार मार्गों, ऊर्जा गलियारों तक पहुंच प्रदान करता है. यहां तख्तापलट से वर्चस्व की लड़ाई और बढ़ेगी.

-सीरिया में तख्तापलट का दुनिया पर कई तरह के असर हो सकते हैं. सबसे पहले, यह मिडिल ईस्ट की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करेगा, क्योंकि सीरिया एक महत्वपूर्ण देश है जो कई अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़ा हुआ है.

- सीरिया में विद्रोह का असर रूस पर भी दिखेगा. क्योंकि पश्चिमी एशिया में सीरिया उसका सबसे भरोसेमंद पार्टनर है. रूस बशर अल असद को हर तरह की सैन्य, आर्थिक व रणनीतिक मदद देता रहा है. दूसरी ओर, विद्रोहियों को अमेरिकी समर्थन प्राप्त है, लिहाजा रूस चाहेगा कि असद की सरकार दोबारा बन जाए. क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ था तो विद्रोही अमेरिका के समर्थन से रूस में भी अशांति पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं.

-तख्तापलट का असर ग्लोबल इकोनॉमी पर पड़ सकता है. खासकर ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में सीरिया एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है. ऐसे में  किसी भी राजनीतिक परिवर्तन का असर वैश्विक ऊर्जा बाजार पर पड़ सकता है.

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इन पड़ोसी देशों में भी हो चुका तख्तापलट
बांग्लादेश: 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा. प्रदर्शनकारी उनके घर में घुस गए थे.  आलम ये था कि बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीपुर्रहमान की मूर्ति को तोड़ा गया.

श्रीलंका: भारत के पड़ोस में श्रीलंका में 13 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को आर्थिक संकट पर लोगों के आक्रोश और विरोध के कारण देश छोडकर भागना पड़ा था. तब भी लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गए थे.

अफगानिस्तान: 2021 में अफगानिस्तान से जैसे ही अमेरिका ने अपनी सेना हटायी, वहां तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया. ताबिलान के आतंकियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था. राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोडकर भागना पड़ा. उनको UAE में शरण लेनी पड़ी थी.

म्यांमार: 2021 में ही म्यांमार में सेना ने आंग सान सू ची की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर दिया. सत्ता को सेना ने अपने हाथों में ले लिया था.

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