खालिद मेशाल (Khaled Mashaal) अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा था और मर रहा था.. उसके खून में जहर बह रहा था.. इससे उसका श्वसन तंत्र आहिस्ता-आहिस्ता काम करना बंद करता जा रहा था. एक मशीन के जरिए उसके फेफड़ों को आक्सीजन दी जा रही थी. उसकी जिंदगी के चंद दिन ही बचे थे. फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास (Hamas) के संस्थापकों में शामिल रहे मेशाल की जान एक एंटीडॉट, यानी जहर का असर खत्म करने वाली दवा ही बचा सकती थी. लेकिन यह दवा वही व्यक्ति दे सकता था जिसने जहर दिया था, यानी कि जिसने मेशाल की हत्या की कोशिश की थी... और वह व्यक्ति थे इजरायल (Israel) के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu).
बेंजामिन नेतन्याहू के आदेश पर ही इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद (Mossad) के एजेंटों ने खालिद मेशाल को कान के जरिए जहर का इंजेक्शन दिया था. यह घटना सितंबर 1997 में हुई थी.
जहर दिए जाने के बाद मेशाल की हालत बिगड़ती गई और चार दिन बाद वह बेहोश हो गया. मोसाद के एजेंट ने जॉर्डन के अम्मान शहर में एक सड़क पर मेशाल के कान में जहर दिया था. यह इजरायल में किए गए आत्मघाती हमलों का बदला लेने की कार्रवाई थी. मोसाद की इस कार्रवाई पर जॉर्डन के राजा हुसैन नाराज हो गए थे. उन्होंने तय किया था कि यदि मेशाल की मौत हुई तो वे इजरायलियों पर केस चलाएंगे. यदि एजेंट दोषी पाए गए तो उन्हें फांसी पर लटकाया जाएगा.
अमेरिका के दबाव के आगे नेतन्याहू को झुकना पड़ा
इजरायल और उसके अरब के दुश्मनों के बीच समझौता कराने के लिए मध्यस्थता कर रहे अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने तब हस्तक्षेप किया था. उन्होंने इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर दबाव डाला कि वे मेसाल को एंटीडॉट दें. नेतन्याहू ने अनिच्छा के साथ मेशाल को एंटीडॉट दी और अम्मान जाकर हुसैन से माफी भी मांगी. मेशाल को नया जीवन मिल गया. तब मेशाल इजरायल का सबसे बड़ा दुश्मन था लेकिन नेतन्याहू को मजबूरी में उसे नया जीवन देना पड़ा. इजरायल पर अमेरिका का दबाव था क्योंकि ऐसा न होने पर अरब में बड़ा संघर्ष शुरू हो सकता था.
मेशाल ने 15 साल बाद गाजा में भरी थी हुंकार
सन 1997 में यह घटना हुई थी और इसके 15 साल बाद दिसंबर 2012 में खालिद मेशाल गाजा सिटी में लोगों के सामने आया. वह फिलिस्तीनियों की भीड़ के बीच एक रॉकेट के विशाल मॉडल से बाहर निकला. उसकी शान में नारे लगाए गए. उसने फिलिस्तीनियों को संबोधित किया. उसने कहा कि, "हम कभी भी इजरायली कब्जे की वैधता को मान्यता नहीं देंगे. इजरायल के लिए कोई वैधता नहीं है, चाहे इसमें कितना भी समय लगे." उसने कहा था कि, "हम यरुशलम की हर इंच जमीन को मुक्त कराएंगे. इजरायल को यरुशलम में रहने का कोई अधिकार नहीं है."
अब खालिद मेशाल और बेंजामिन नेतन्याहू फिर से एक-दूसरे के सामने होंगे क्योंकि इस्माइल हनिया की मौत के बाद मेशाल को हमास का चीफ बनाया जा रहा है. इजरायल और हमास के बीच संघर्ष जारी है. यह गाजा पट्टी को नियंत्रित करने वाले आतंकी समूह हमास के खिलाफ इजरायल का अब तक का सबसे बड़ा युद्ध है. मेशाल फिलिस्तीनी राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से है.
हनिया की हत्या के बाद मेशाल को हमास की कमान
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान में घुसकर हमास के प्रमुख इस्माइल हनिया की हत्या कर दी है. पहले माना जा रहा था कि हनिया की मौत के बाद आतंकी संगठन हमास कमजोर पड़ जाएगा. लेकिन संगठन के चीफ के लिए मेशाल का नाम सामने आने पर ऐसा लगने लगा है कि इजरायल-हमास संघर्ष और तेज हो सकता है. मेशाल हनिया से ज्यादा खतरनाक है. वह आत्मघाती हमलों का विशेषज्ञ है.
संघर्ष के साथ जीवन गुजारने वाले नेतन्याहू और मेशाल आमने-सामने
जिस तरह बेंजामिन नेतन्याहू का जीवन फिलिस्तीनियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए गुजरा है उसी तरह खालिद मेशाल का जीवन भी इजरायल के खिलाफ संघर्ष करते हुए गुजरा है. सन 1956 में वेस्ट बैंक में जन्मा मेशाल किशोर अवस्था में ही मिस्र के सुन्नी इस्लामवादी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का हिस्सा बन गया था. वह सन 1987 में आतंकी संगठन हमास का गठन करने वाले लड़ाकों में शामिल था. सन 1992 में हमास का पोलित ब्यूरो गठित हुआ था और वह उसका संस्थापक सदस्य था. उसने सन 1996 से 2017 तक पोलित ब्यूरो का नेतृत्व भी किया था. उसके बाद इस्माइल हनिया को नेतृत्व सौंपा गया था. मेशाल किसी एक जगह पर नहीं रहता. वह कभी सीरिया में कबी कतर में तो कभी मिस्र में रहता है.
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